राजस्थान का दौसा ऐतिहासिक, धार्मिक और साहसिक नगरी के रूप में जाना जाता है. दौसा लोकसभा में वो सब है, जो आपको देश, दुनिया में मिलेगा. यहां विश्व प्रसिद्ध स्थल हैं, जिनको देखने के लिए राजस्थान ही नहीं, देश-विदेश के लोग भी आते हैं. राजधानी जयपुर से भी दौसा सिर्फ 54 किलोमीटर की दूरी पर है. दौसा का नाम पास ही की देवगिरी पहाड़ी के नाम पर पड़ा. दौसा में धार्मिक स्थल मेहंदीपुर बालाजी है. दुनिया की सबसे गहरी आभानेरी की चांद बावड़ी भी इस क्षेत्र की आभा से पूरी दुनिया को रूबरू करवाती है. यहां भूतों का किला भानगढ़ भी है. दौसा में लंब समय तक बडगुर्जरों का आधिपत्य रहा. दौसा के किले का निर्माण भी बड़गुर्जरों ने करवाया.
दौसा ने सियासत के कई रूप देखे हैं. दौसा ने कई दिग्गज नेताओं का सियासी उदय और अंत भी देखा है. मरुधरा की ये लोकसभा सीट कई मायनों में अहम है, क्योंकि यहां लड़ाई सियासत से ज्यादा अहम की होती रही है. इसी सियासी लड़ाई को भेदते हुए राजेश पायलट ने दौसा को कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ बना दिया था. लेकिन वर्तमान में दौसा लोकसभा सीट बीजेपी की नई प्रयोगशाला बन गई है. यहां पिछले 10 साल से भगवा लहर रहा है. ऐसे में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां होंगी, लेकिन इस सीट के सियासी इतिहास को देखे तो कांग्रेस के लिए उम्मीद की एक किरण जरूर नजर आती है.
दौसा लोकसभा सीट से बीजेपी ने कन्हैयालाल मीणा को अपना प्रत्याशी बनाया है. उनके सामने कांग्रेस के दौसा से विधायक मुरारीलाल मीणा चुनौती दे रहे हैं. दोनों पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. हां, दोनों ही नेता चार-चार बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. दौसा में पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होगा.
दौसा लोकसभा चुनाव
दौसा लोकसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुए थे. इस सीट से पंडित नवल किशोर शर्मा, राजेश पायलट, सचिन पायलट, रमा पायलट, किरोड़ी लाल मीणा जैसे कद्दावर नेता सांसद बने हैं जिन्होंने देश की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. दौसा लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो दौसा ने 19 बार लोकसभा के चुनाव देखे हैं.

यहां से सबसे ज्यादा 12 बार कांग्रेस से सांसद बने. 4 बार बीजेपी, 2 बार स्वतंत्र पार्टी और एक बार निर्दलीय सांसद चुना गया है. अगर बात लोकसभा सांसदों की करें तो 1980 में यहां से कांग्रेस के नवल किशोर शर्मा ने जीत दर्ज की थी. 1984 में राजेश पायलट की एंट्री होती है और वे पहली बार सांसद बनते हैं. 1989 में नाथू सिंह ने दो हार के बाद जीत दर्ज की और बीजेपी का पहली बार इस सीट पर खाता भी खुला. लेकिन समय बदलने के साथ ही कांग्रेस ने फिर सीट जीत ली और राजेश पायलट 1991 में फिर सांसद बने. 1996 में राजेश पायलट यहां से फिर नेता चुने गए. 1998 और 1999 में भी राजेश पायलट सांसद बने. वर्ष 2000 में राजेश पायलट की मृत्यु के बाद यहां हुए चुनाव में कांग्रेस ने उनकी पत्नी रमा पायलट को उम्मीदवार बनाया. रमा पायलट ने भी जीत दर्ज की. 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट को मैदान में उतारा और सचिन पायलट यहां से जीतकर पहली बार संसद पहुंचे.
2009 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किरोड़ी लाल मीणा ने जीत दर्ज की. 2014 में बीजेपी के हरीश मीणा ने जीत दर्ज की. वर्तमान में यहां से बीजेपी की जसकौर मीणा सांसद हैं. इनके अलावा बहुजन समाज पार्टी से सोनू कुमार ढांका और निर्दलयी नरेश कुमार मीणा चुनावी मैदान में हैं. नरेश कुमार मीणा कांग्रेस छोड़कर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.
दौसा लोकसभा क्षेत्र
दौसा लोकसभा क्षेत्र में 3 जिलों दौसा, जयपुर और अलवर की 8 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें 5 पर बीजेपी और 3 पर कांग्रेस का कब्जा है. दौसा विधानसभा से कांग्रेस के मुरारीलाल मीणा विधायक हैं. लालसोट विधानसभा से बीजेपी के रामबिलास मीणा, महुवा से बीजेपी के राजेंद्र मीणा, सिकराय से बीजेपी के विक्रम बंसीवाल, बांदीकुई से बीजेपी के भागचंद टांकड़ा, थानागाजी से कांग्रेस के कांतिलाल मीणा, बस्सी से कांग्रेस के लक्ष्मण मीणा और चाकसू से बीजेपी के रामावतार बैरवा विधायक हैं.
दौसा मतदाताओं का जातीय समीकरण
दौसा की सियासत बड़ी मुश्किल है. भले ही इस सीट को कांग्रेस और बीजेपी अपना मजबूत गढ़ बता रही हो, लेकिन परिसीमन के बाद हुए 2009 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी और निर्दलीय के रूप में किरोड़ी लाल मीणा जीत गए, जबकि जम्मू-कश्मीर से चुनाव लड़ने आए एक अनजान व्यक्ति कमर रब्बानी चेची को भी करीब पौने तीन लाख वोट मिले जो अप्रत्याशित थे. दौसा लोकसभा सीट पर करीब 19 लाख मतदाता हैं. इनके लिए 1965 मतदान केंद्र भी बनाए गए हैं. दौसा लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मीणा मतदाता हैं. यहां मीणा वोटरों की संख्या साढ़े 7 लाख है. एससी और ब्राह्मण मतदाता भी 4-4 लाख हैं. इनके अलावा करीब ढाई-ढाई लाख गुर्जर-माली और शेष अन्य जातियों के मतदाता हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 2, 2024, 16:04 IST