Explainer : जेलों में कैदी कैसे काम करके करते हैं कमाई, कितना मिलता है पैसा

हाइलाइट्स

दोषी कैदियों को जेल के अंदर काम करने के लिए भुगतान मिलता है
सूरत में कैदियों के लिए डायमंड प्रोसेस यूनिट खोली गई है
मेरठ की जेल में कैदी बैट बनाते हैं तो हिमाचल की जेल में फर्नीचर बनाने का काम

देश की जेलों में जितने सजायाफ्ता कैदी हैं, उन्हें काम करना होता है. काम करने का तरीका कैदियों की क्षमता और कुशलता पर अलग अलग होता है लेकिन वो अपने कामों से जेल में धन कमाते हैं. उनके खाते खोले जाते हैं. कुछ जेलों में कैदी काम के अनुसार ज्यादा पैसा कमा लेते हैं. कुछ जेलों में कैदियों के बैंक में अकाउंट खुलवा कर उनका धन उसमें जमा किया जाता है. वैसे कैदियों द्वारा कमाए गए धन का कुछ हिस्सा उन्हें जेल में खर्च करने के लिए भी दिया जाता है.

वैसे जेल में करेंसी की जगह पैसे के कूपन मिलते हैं. ये कूपन अलग अलग कीमत के होते हैं. ये कैदियों को उनके काम के बदले मिलते हैं. वैसे जेल कैदियों के परिजिन भी उनके लिए पैसे जमा करा सकते हैं, जिसे कूपन में कन्वर्ट करके उन्हें दे दिया जाता है. अगर वो जेल में मेहनत मजदूरी करके पैसे कमाते हैं, वो उस पैसे को घर भी भेज सकते हैं या जल प्रशासन उनके पैसे का कुछ हिस्सा जमा करता रहता है, जो उन्हें तब मिलता है, जब उनकी रिहाई होती है.

हर जेल में एक सरकारी कैंटीन होती है, जिसमें रोजाना के इस्तेमाल के सामान मिलते हैं. इनसे जेल के अंदर साबुन, टूथपेस्ट, इनरवियर्स आदि खरीद सकते हैं.

सवाल – किस तरह कैदियों को मिलता है वेतन?
– दोषी कैदियों को जेल के अंदर काम करने के लिए भुगतान मिलता है, जो काम स्वेच्छा से या उनकी सजा का हिस्सा हो सकता है. ये मजदूरी उनके वर्गीकरण के आधार पर तय की जाती है – कुशल, अर्द्ध कुशल और अकुशल – और दर समय-समय पर संशोधित की जाती है.

सवाल – कितना मिलता है मजदूरी करने पर?
– पारिश्रमिक और मजदूरी एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होती है. 2017 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी 2015 के जेल आंकड़ों के अनुसार, पुडुचेरी ने कुशल अभियुक्तों, अर्द्ध कुशल अभियुक्तों और अकुशल अभियुक्तों को क्रमश: 180 रुपये, 160 रुपये और 150 रुपये प्रति दिन की मजदूरी तय की. इसके बाद दिल्ली के तिहाड़ ने क्रमशः 171 रुपये, 138 रुपये और 107 रुपये दिए. अगला बिहार (156 रुपये, 112 रुपये, 103 रुपये) और राजस्थान (150 रुपये, शून्य और 130 रुपये) थे.

सवाल – सबसे कम भुगतान करने वाले राज्यों कौन से हैं?
निचले सिरे पर मणिपुर और मिजोरम हैं, जिन्होंने 12 रुपये से 15 रुपये प्रति दिन के रूप में कम से कम भुगतान किया था. पश्चिम बंगाल ने 35 रुपये (कुशल अभियुक्त), 30 रुपये (अर्द्ध कुशल) और 26 रुपये (अकुशल) का भुगतान किया, जबकि छत्तीसगढ़ ने 30 रुपये (कुशल) और 26 रुपये (अकुशल) का भुगतान किया, जो कि मजदूरी के रूप में लगभग आधा था मध्य प्रदेश 55 रुपये (कुशल) और 50 रुपये (अकुशल).

सूरत की जेल में कैदियों के लिए डायमंड प्रोसेस यूनिट खोली गई है. जिससे हर कैदी हर महीने करीब 20,000 रुपए तक कमा लेता है. वहीं हिमाचल प्रदेश में एक कैदी फर्नीचर बनाकर काफी पैसा कमाता है ये घर भेजता है ताकि घर का खर्च चल सके. मेरठ की जेल में कैदियों से अब क्रिकेट का बल्ला और दूसरे साजोसामान बनवाए जा रहे हैं. वैसे देश में सभी जेलों में अलग अलग तरह तरह के उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जिनकी अच्छी डिमांड भी बाजार में रहती है.

सवाल – कैदियों के वेतन में कटौती क्यों की जाती है?
1998 में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को एक तंत्र तैयार करने के लिए कहा ताकि अपराध के पीड़ितों को मुआवजा दिया जा सके (गुजरात राज्य और गुजरात बनाम गुजरात उच्च न्यायालय के केस में यह निर्णय आया). विभिन्न राज्यों में जेलों ने राज्य से राज्य में भिन्न मुआवजे की राशि के साथ अपना खुद का नियम बना दिया. फिर 2008 में, सीआरपीसी को एक नए खंड, 357 ए के साथ संशोधित किया गया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि प्रत्येक राज्य को अपराध पीड़ितों और उनके आश्रितों की क्षतिपूर्ति के लिए एक योजना तैयार करनी चाहिए.

दिल्ली उच्च न्यायालय के मामले में याचिकाकर्ता कात्यायनी ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ-साथ सीआरपीसी संशोधन दोनों के बाद दिल्ली सरकार ने मुआवजे के लिए अलग-अलग प्रावधान किए हैं. 1998 के आदेश के बाद, 2006 में दिल्ली जेल नियमों में संशोधन किया गया था, जिसमें नियम 39 ए के साथ कैदियों की 25% मजदूरी का कटौती और पीड़ित कल्याण कोष में जमा किया जा सकता था.
आमतौर पर ये पैसा उन्हें जेल छोड़ते समय दिया जाता है या फिर उनके आश्रितों को भेजा जाता है.

सवाल – क्या जेलों में काम करना जरूरी होता है?
– भारत में, “कठोर कारावास” की सजा पाने वाले कैदियों को सुविधा की कार्यशालाओं या उद्योगों में काम करना जरूरी होता है. जेल उद्योग 1894 के जेल अधिनियम और जेल मैनुअल द्वारा शासित होता है, जो जेलों के संचालन के लिए नियमों और विनियमों की रूपरेखा तैयार करता है. दोषियों को कपड़ा निर्माण, लौह कार्य और बढ़ईगीरी सहित कई व्यवसायों की ट्रेनिंग दी जाती है. अन्य कौशलों में चिनाई, प्लंबिंग, इलेक्ट्रिक फिटिंग, सिलाई, तैयार कपड़ों का निर्माण, चमड़े का काम, ड्राइविंग, जेल सेवा, कृषि, बागवानी, डेयरी, मुर्गीपालन, फूलों की खेती और बहुत कुछ शामिल हैं.

Tags: Central Jail, Delhi jail, Jail Terms, Jails, Tihar jail

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