भारतीय समाचार-पत्र दिवस पर विशेष लेख: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारिता ने छत्तीसगढ़ की क्षेत्रीय विकास में दिया है महत्वपूर्ण योगदान

महेन्द्र सिंह मरपच्ची
एमसीबी/28 जनवरी 2025/ भारत में हर साल 29 जनवरी को भारतीय समाचार-पत्र दिवस मनाया जाता है, जो भारतीय पत्रकारिता के गौरवशाली इतिहास और लोकतंत्र में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। यह दिन न केवल पत्रकारिता के विकास का उत्सव है, बल्कि उन संपादकों और पत्रकारों को भी याद करने का अवसर है, जिन्होंने अपने साहस, नेतृत्व और लेखनी से समाज को नई दिशा दी है।

भारत में समाचार-पत्रों का इतिहास 18वीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ था। 29 जनवरी 1780 को प्रकाशित ‘हिकीज़ बंगाल गजट’ भारत का पहला समाचार-पत्र था, जिसे जेम्स ऑगस्टस हिकी ने शुरू किया। हिकी का यह प्रयास ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों के विरुद्ध आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए जाना जाता है। हालांकि यह समाचार-पत्र लंबे समय तक नहीं चल पाया, लेकिन इसने भारतीय पत्रकारिता की नींव अवश्य रखी थी। वहीं 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारतीय समाचार-पत्रों ने स्वतंत्रता संग्राम को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान कई प्रमुख संपादकों ने अपनी लेखनी से जनता को जागरूक किया।

बाल गंगाधर तिलक भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में एक क्रांतिकारी संपादक के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने ‘केसरी’ और ‘मराठा’ समाचार-पत्रों का संपादन किया। इन अखबारों के माध्यम से उन्होंने स्वराज का नारा दिया और ब्रिटिश शासन की नीतियों की तीखी आलोचना की। तिलक के लेखों ने जनता को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ और ‘हरिजन’ के संपादक के रूप में समाज को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया। उन्होंने पत्रकारिता को सत्य और नैतिकता का माध्यम बनाया। उनके लेखों ने न केवल भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव डाला।

हिंदी पत्रकारिता के पहले समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ के संपादक जुगल किशोर शुक्ल ने 1826 में इसे शुरू किया। यह हिंदी भाषा में प्रकाशित होने वाला पहला समाचार-पत्र था, जिसने हिंदी भाषी जनता को जागरूक करने का कार्य किया था। वहीं जी. सुब्रमण्य अय्यर ने ‘द हिन्दू’ को 1878 में प्रारंभ किया। यह समाचार-पत्र ब्रिटिश शासन के खिलाफ आलोचनात्मक दृष्टिकोण के लिए जाना जाता था। अय्यर की संपादकीय नीतियों ने इसे जनता का विश्वासपात्र बनाया। इसके साथ ही शिशिर कुमार घोष ने ‘अमृत बाज़ार पत्रिका’ के संपादक के रूप में पत्रकारिता को स्वतंत्रता संग्राम का मंच बनाया। उनके नेतृत्व में यह पत्रिका जनता की आवाज और ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ एक सशक्त माध्यम बना था। इसके अलावा राजाराम मोहन राय ने सामाजिक सुधारों के लिए ‘समाचार सुधावर्षण’ और ‘बंगदूत’ का संपादन किया। उनके लेखों ने समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ जनमत तैयार किया। आजादी के बाद भारतीय पत्रकारिता ने न केवल लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने में योगदान दिया, बल्कि सामाजिक मुद्दों को उजागर करने का कार्य भी किया। कुलदीप नैयर, जो एक प्रतिष्ठित पत्रकार और संपादक थे, ने आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने ‘स्टेट्समैन’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में अपने लेखों के माध्यम से सरकार की गलत नीतियों का विरोध किया । वहीं रामनाथ गोयनका ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के माध्यम से पत्रकारिता को नया आयाम दिया। उनका समाचार-पत्र निष्पक्षता और निर्भीकता का प्रतीक बना। वर्तमान समय में पत्रकारिता डिजिटल मीडिया की ओर बढ़ चुकी है। संपादकों की भूमिका पहले से अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है। सोशल मीडिया और फेक न्यूज़ के युग में संपादकों का कर्तव्य है कि वे तथ्यात्मक और सत्य जानकारी प्रस्तुत करें।

इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार-पत्रों में ‘देशबंधु’, ‘हरिभूमि’, ‘नवभारत’, ‘दैनिक भास्कर’, और ‘पत्रिका’ जैसे प्रमुख पत्रिकाएं शामिल हैं। ‘देशबंधु’ छत्तीसगढ़ का पहला प्रमुख हिंदी समाचार-पत्र है, जिसे 1959 में प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संस्थापक और संपादक राजेंद्र अवस्थी ने इसे जनता की आवाज के रूप में स्थापित किया। उनकी लेखनी ने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे मध्य भारत में जनजागरण का काम किया। इसके साथ ही ‘हरिभूमि’ छत्तीसगढ़ के प्रमुख समाचार-पत्रों में से एक है, जो राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाता है। इसके प्रधान संपादक हिमांशु द्विवेदी ने इसे एक सशक्त मंच के रूप में आज भी स्थापित किए हुए हैं। इसके अलावा ‘नवभारत’ छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में से एक है। इसके संपादक पंकज शर्मा ने इसे जनहित के मुद्दों पर केंद्रित बनाए रखा और पत्रकारिता की उच्च मान्यताओं को आज भी बरकरार रखा है। इसके साथ ही ‘दैनिक भास्कर’ और ‘पत्रिका’ जैसे राष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्रों का भी छत्तीसगढ़ में बड़ा पाठक वर्ग है। इन समाचार-पत्रों के छत्तीसगढ़ संस्करण ने स्थानीय खबरों और क्षेत्रीय मुद्दों को प्रमुखता दी है। छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता ने सामाजिक सुधार, शिक्षा, आदिवासी अधिकारों और राज्य के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

यह क्षेत्रीय पत्रकारिता का एक सशक्त उदाहरण है, जहां संपादकों ने न केवल जनहित के मुद्दे उठाए बल्कि समाज को प्रगति की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभाई। भारतीय समाचार-पत्र दिवस हमें पत्रकारिता के उन मूलभूत सिद्धांतों की याद दिलाता है, जिन पर यह पेशा आधारित है – सत्यता, निष्पक्षता और जनता के प्रति जवाबदेही। साथ ही यह दिन उन संपादकों और पत्रकारों को सम्मानित करने का भी अवसर है, जिन्होंने समाज को बेहतर बनाने के लिए अपनी लेखनी का उपयोग आज भी कर रहे है ।

 

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